डाटा स्थानीयकरण? और भारत का रुख

चर्चा में क्यों?
फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने हाल ही में कहा है कि डेटा को स्थानीय रूप से संग्रहित करने की भारत की मांग को समझा जा सकता है, लेकिन यदि एक देश के लिए ऐसा किया गया तो अन्य देशों की तरफ से भी इसकी मांग की जा सकती है और देश अपने ही नागरिकों का डाटा का दुरुपयोग कर सकते हैं।

उन्होंने उन देशों के बारे में आशंका व्यक्त की है जो स्थानीय रूप से डेटा स्टोर करना चाहते हैं। उनके अनुसार, ऐसा करने से उन संभावनाओं को जन्म मिलेगा, जहां सत्तावादी सरकारों के पास संभावित दुरुपयोग के लिए डेटा तक पहुंच होगी।
मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि अगर किसी बड़े देश में हमे ब्लॉक किया जाता है तो हमारे कारोबार पर इसका असर पड़ेगा।
आरबीआई के दिशा-निर्देशों के खिलाफ सभी डिजिटल भुगतान कंपनियों को अपने कारोबार के लिए डाटा का संग्रह अवश्य स्थानीय रूप से करना चाहिए।
बता दें, अमेरिका ने 'स्थानीय भेदभाव' और 'व्यापार-विकृत' के रूप में डेटा स्थानीयकरण पर भारत के प्रस्तावित मानदंडों की आलोचना की है।
डाटा स्थानीयकरण
डाटा स्थानीयकरण का अर्थ है डाटा को उस उपकरण में जमा किया जाना जो उस देश की सीमाओं के अन्दर भौतिक रूप से विद्यमान हैं, जहाँ कि डाटा का सृजन हुआ था।
कुछ देशों में डिजिटल डाटा के मुक्त प्रवाह पर पाबंदी है, विशेषकर उस डाटा के प्रवाह पर जिसका सरकार की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ सकता है।
ऐसी पाबंदी लगाने के पीछे कई कारण होते हैं, जैसे – नागरिक के डाटा को सुरक्षित करना, डाटा की निजता की रक्षा करना, डाटा की संप्रभुता को बनाये रखना, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास की गतिविधियाँ।
तकनीकी कंपनियों के पास प्रचुर मात्रा में डाटा जमा हो जाता है क्योंकि उपभोक्ता के डाटा तक उनकी पहुँच निर्बाध है और उस पर उनका नियंत्रण है। 
इसका उनको ये लाभ मिलता है कि वे भारतीय उपभोक्ताओं के डाटा को स्वतंत्र रूप से प्रोसेस कर लेते हैं और देश के बाहर उसका मौद्रिक लाभ उठा लेते हैं।
भारत सरकार डाटा का स्थानीयकारण साथ ही साथ एक विशेष कारण से भी चाहती है। वह भारत को डिजिटल जगत का एक वैश्विक हब बनाना चाहती है।
सरल शब्दों ने डेटा स्थानीयकरण कानून उन विनियमों को संदर्भित करते हैं जो यह तय करते हैं कि किसी देश के नागरिकों के डेटा को देश के अंदर कैसे एकत्रित, संसाधित और संग्रहीत किया जाता है।
तकनीकी कंपनियाँ चिंतित क्यों हैं?
यह सच है कि डाटा का स्थानीयकरण करने से सरकार को जाँच-पड़ताल करते समय डाटा आसानी से सुलभ हो जाएगा, परन्तु कंपनियों को डर है कि सरकार डाटा तक पहुँचने के लिए बार-बार माँग करेगी जिसके लिए नए स्थानीय डाटा केंद्र खोलने होंगे. इन केन्द्रों के खोलने में लागत आएगी जिससे कंपनियों को आर्थिक घाटा होगा।
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