युजी इवासावा को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का न्यायाधीश निर्वाचित किया गया

जापान के कानूनविद युजी इवासावा को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) का न्यायाधीश निर्वाचित किया गया है। वह सेवानिवृत्त जज हिसाशी ओवाडा की जगह लेंगे। ओवाडा भी जापान से ही थे।
इवासावा को सुरक्षा परिषद में 15 में से 15 वोट मिले और महासभा में 189
में से 184 वोट मिले। आईसीजे के 15 जजों का चुनाव नौ वर्षो के कार्यकाल के लिए होता है। ओवाडा द्वारा अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा देने के बाद यह चुनाव हुआ था।
ओवाडा का कार्यकाल 2021 में खत्म होना था। आईसीजे का काम देशों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करना होता है। इवासावा का कार्यकाल 23 जून 2018 से ही शुरू हो रहा है यह पांच फरवरी 2021 को समाप्त होगा। इवासावा (64) टोक्यो यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर हैं।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस):
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का शीर्ष न्यायिक अंग है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा वर्ष 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में इसने कार्य करना प्रारंभ किया था। इसका मुख्यालय (पीस पैलेस) हेग (नीदरलैंड) में स्थित है।
इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ वहन करता है। इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेजी और फ्रेंच हैं। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में 15 जज होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद् द्वारा नौ वर्षों के लिये चुने जाते हैं। इसकी गणपूर्ति संख्या (कोरम) 9 है।
इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के लिये प्रत्याशी को महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों में ही बहुमत प्राप्त करना होता है। इन न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है।
एक ही देश से दो न्यायाधीश नहीं हो सकते हैं। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में पहले भारतीय मुख्य न्यायाधीश डा.नगेन्द्र सिंह थे। संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं है वे भी यहाँ न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उप-सभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है।
मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।
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